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“Law Easy’s and Sansthan Nyayshray methodology bridges the gap between theoretical law and judicial practice – a rare quality in legal education today

Legal Legend, Ex-CJI, Supreme Court of India

Hon’ble Excellency DY Chandrachud

भारतीय न्यायपालिका पर गहराता विश्वसनीयता का संकट

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भारतीय न्यायपालिका पर गहराता विश्वसनीयता का संकट

हाल ही में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट जस्टिस एएस ओका की चिंता व्यक्त की और कहा कि भारतीय
न्यायपालिका इस समय विश्वसनीयता के संकट अर्थात क्रेडिबिलिटी क्राइसिस से गुजर रही है यह सही है जिस प्रकार से
प्रकरणों के निदान में समय लग रहा है वैसे वैसे न्याय प्राप्ति के लिए आने वाला पीड़ित अब न्यायालय के अलावा वैकल्पिक
रास्ते खोजने लगा है फिर भले ही वह रास्ता कानून में सही हो अथवा ना हो कोरोना संक्रमण ने भारतीय न्याय व्यवस्था को भी
संक्रमित कर दिया वर्तमान में कोविड संक्रमण के चलते लाकडाउन से भारतीय न्याय व्यवस्था निरंतर प्रभावित हुई है भारतीय
न्याय व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है और शीघ्र ही इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता की ओर इशारा कर
रही हैं।

नेशनल ज्यूडिशल डाटा ग्रिड द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के विश्लेषण किए जाने के उपरांत यह परिणाम सामने आये है कि
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात पहली बार इतनी अधिक पेंडेंसी किसी वर्ष में बड़ी है तो वह है वर्ष 2020-2021, जिसमें भारतीय
न्याय व्यवस्था में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है जो कि सुप्रीम कोर्ट में 10.35 प्रतिशत देश की विभिन्न हाईकोर्ट में 20.4 प्रतिशत तथा
अधीनस्थ न्यायालयों अर्थात जिला कोर्ट में 18.4 प्रतिशत की है जो कि विगत वर्षों में 4 प्रतिशत से 8 प्रतिशत रहती थी उक्त
पेंडेंसी का कारण सीधा सीधा कोरोना संक्रमण की वजह से लगाया गया लॉकडाउन रहा है जिसमें मात्र आवश्यक मामलों की
वर्चुअल सुनवाई न्यायालयों में हुई और अदालतों का कामकाज बुरी तरीके से प्रभावित हुआ इस प्रकार आज तक भारत की
अदालतों में कुल लगभग चार करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं बढ़ती पेंडेंसी का कारण जजों की कम संख्या भी है हाईकोर्ट
के लिए सेंशन जजों की संख्या 1080 के मुकाबले 661 जज, 1 मार्च 2021 के उपलब्ध डाटा के अनुसार वर्तमान में कार्य कर
रहे हैं स्वयं सुप्रीम कोर्ट में कुल 34 स्वीकृत पदो पर 30 न्यायाधीश कार्य कर रहे हैं जिसमें से मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे
भी निवर्तमान हो चुके हैं हमारे देश में एक सर्वोच्च न्यायालय 26 उच्च न्यायालयों एवं लगभग 19000 अधीनस्थ न्यायालय हैं,
पिछले साल 25 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगते समय लंबित प्रकरणों की संख्या 3.68 करोड़ थी, जो 1 साल में बढ़कर
लगभग 4.12 करोड़ प्रकरण हो गए हैं।


पेंडेंसी को समाप्त करने एवं न्याय व्यवस्था को सुचारू चलाए जाने के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति तेज गति से की जाना
जरूरी है भारत में प्रति एक लाख व्यक्ति पर मात्र दो जज है इस प्रकार न्यायाधीशों की संख्या अत्यंत कम है इसे सुधारने के
लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में गति लानी होगी लंबित प्रकरणों के बढ़ने के कारणों में न्यायाधीशों की कमी के अलावा वर्तमान
प्रचलित कानून भी है देश की न्यायिक व्यवस्था एवं प्रचलित कानूनों में बदलाव की अत्यंत आवश्यकता है अंग्रेजों के समय
जमाने में बनाए गए कानून जैसे आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंस तीनों को मर्ज करते हुए एक नया अपराधी कानूनी कोड
बनाया जाना चाहिए, जोकि एक ही तरह के विषयों में अलग-अलग निर्णय एवं मत विभिन्नता पर रोक लगाने का कार्य करेगा

मोहल्ला अथवा वार्ड स्तर पर प्री लिटिगेशन कमेटियों का गठन किया जाना चाहिए, जो कि विवादों का निराकरण प्राथमिक
स्तर पर ही कर दे और न्यायालय में आने के पूर्व ही अनेक प्रकरणों का निदान हो जाए इस प्रकार की प्री लिटिगेशन कमेटियों
में कानून की समझ रखने वाले अधिवक्ताओं एवं अन्य वरिष्ठ नागरिकों की सहायता ली जा सकती है लंबित प्रकरणों में 46%
हिस्सा सरकार का है इसीलिए सरकार को एक प्रभावी लिटिगेशन पॉलिसी बनाकर लागू करनी चाहिए जिससे कि लंबित
प्रकरणों का निदान हो सके आर्बिट्रेशन अर्थात मध्यस्थता का दायरा बढ़ाकर छोटे-छोटे अपराधिक प्रकरण भी आर्बिट्रेशन
के माध्यम से सुलझाए जाने के कानूनी उपबंध वर्तमान में जरूरी हो गए हैं दांडिक कानून के अंतर्गत समझौता योग्य अपराधों
की संख्या को बढ़ावा देना चाहिए अनेक ऐसी धाराएं हैं जिसमें समझौता होने के बाद भी प्रकरण समाप्त नहीं होता है उनमें
पक्षकारों की राजी मर्जी से प्रकरण समाप्त करना चाहिए

Comments (2)

  1. Edna Watson

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  2. Scott James

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